आज भारत ही नहीं कभी विश्व की सर्वाधिक पवित्र नदी कही जाने वाली गंगां जिसे सदैव से ही भारतीय जनमानस माँ के समक्ष पूज्यनीय मानता रहा है,की वर्तमान स्थित के लिये न्यायालय ,सरकारें (राज्य और केन्द्र)और जनता सब के सब बराबर के जिम्मेदार हैं
वस्तुतः गंगा तो कब का मर चुकी है अब जो भी शेष है वह या तो बरसात का पानी है या फिर एक शहर से दूसरे की ओर छोडा गया गन्दे नालों और कारखानों का पृदूषित जल मात्र है जिसे गंगा की मिट्टी अपनें स्वभाव वश कुछ किलोमीटर अपने साथ रख कर इस हद तक साफ कर देती है कि वह नदी के जल जैसा दिखने लगे जो सर्वथा पीने और नहाने योग्य भी नहीं होता अभी तक गंगा की स्वच्छता अभियान में खर्च की गई हजारों करोड की धन राशि का ज्यादा तर हिस्सा या तो कर्मचारियों के वेतन में खर्च हो चुका हैया फिर भृष्टाचार की भेंट चढ गया है ।धरातल पर कार्य के नाम पर कहीं पर भी कुछ भी नहीं है।इस सन्दर्भ में राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार के बीच सदैव ही तारतम्यता का अभाव रहा ।इस नदी के गन्दे नाले में परिवर्तित हो आज भारत ही नहीं कभी विश्व की सर्वाधिक पवित्र नदी कही जाने वाली गंगां जिसे सदैव से ही भारतीय जनमानस माँ के समक्ष पूज्यनीय मानता रहा है,की वर्तमान स्थित के लिये न्यायालय ,सरकारें (राज्य और केन्द्र)और जनता सब के सब बराबर के जिम्मेदार हैं
वस्तुतः गंगा तो कब का मर चुकी है अब जो भी शेष है वह या तो बरसात का पानी है या फिर एक शहर से दूसरे की ओर छोडा गया गन्दे नालों और कारखानों का पृदूषित जल मात्र है जिसे गंगा की मिट्टी अपनें स्वभाव वश कुछ किलोमीटर अपने साथ रख कर इस हद तक साफ कर देती है कि वह नदी के जल जैसा दिखने लगे जो सर्वथा पीने और नहाने योग्य भी नहीं होता अभी तक गंगा की स्वच्छता अभियान में खर्च की गई हजारों करोड की धन राशि का ज्यादा तर हिस्सा या तो कर्मचारियों के वेतन में खर्च हो चुका हैया फिर भृष्टाचार की भेंट चढ गया है ।धरातल पर कार्य के नाम पर कहीं पर भी कुछ भी नहीं है।इस सन्दर्भ में राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार के बीच सदैव ही तारतम्यता का अभाव रहा ।इस नदी के गन्दे नाले में परिवर्तित हो जाने के मूल करणों कारणों को जानते हुए भी उन्हें दूर करने के कोई पृयास नहीं किये गये सबसे अधिक दुख का विषय यह रहा कि बहुत से पर्यावरणविदों एवं उनके के विरोध के बावजूद सभी सरकारों ने गंगा के प्राप्त कोई सकारात्मक पहल करने की जगह टिहरी डैम बनवा कर न केवल इसके पृवाह को ही रोक दिया बल्कि गंगा के मूल मार्ग में भी परिवर्तन कर दिया गया परिणामतः वह स्वयं के जल को शुद्ध कर लेने की अपनी विशेषताओं को ही खो बैठी।इस सन्दर्भ में उच्चतम न्यायालय ने भी सरकारों का ही साथ दिया शायद माननीय न्यायालय इस तथ्य से अवगत ही नहीं था कि किसी भी नदी के पृवाह की निरन्तरता ही उसके जल को शुध्द करने में सबसे अहम भूमिका निभाती है पृवाह को रोका जाना नदी को तालाब में बदलने जैसा है जहाँ शुध्द जल भी पृदूषित हो जाता है और गंगा के सन्दर्भ में तो उसके पृवाह के साथ ही उसका वशिष्ट मार्ग ही उसकी पवित्रता का सबसे बडा कारण है
अत: बजाय एक दूसरे पर दोषारोपण करने के सभी सम्बन्धित पच्छों से पक्षों का यह दायित्व है कि इस पवित्र नदी के पृदूषण के मुख्य कारणों जो लगभग सभी सम्बन्धित पक्षों को ज्ञात हैं का स्थायी समाधान वैज्ञानिक ढंग निकालने का पृयास करें तो निश्चय ही हम सफल होंगें और यह पवित्र नदी पुनः अपना पुराना गौरव प्राप्त कर लेगी । वर्तमान केन्द्रीय सरकार राज्यों को साथ लेकर ऐसा करने में अवश्य ही सफल होगी
इस आशा और विश्वास के साथ
समस्त गंगा भक्त भारत वर्ष
भारत ही नहीं कभी विश्व की सर्वाधिक पवित्र नदी कही जाने वाली गंगां जिसे सदैव से ही भारतीय जनमानस माँ के समक्ष पूज्यनीय मानता रहा है,की वर्तमान स्थित के लिये न्यायालय ,सरकारें (राज्य और केन्द्र)और जनता सब के सब बराबर के जिम्मेदार हैं
वस्तुतः गंगा तो कब का मर चुकी है अब जो भी शेष है वह या तो बरसात का पानी है या फिर एक शहर से दूसरे की ओर छोडा गया गन्दे नालों और कारखानों का पृदूषित जल मात्र है जिसे गंगा की मिट्टी अपनें स्वभाव वश कुछ किलोमीटर अपने साथ रख कर इस हद तक साफ कर देती है कि वह नदी के जल जैसा दिखने लगे जो सर्वथा पीने और नहाने योग्य भी नहीं होता अभी तक गंगा की स्वच्छता अभियान में खर्च की गई हजारों करोड की धन राशि का ज्यादा तर हिस्सा या तो कर्मचारियों के वेतन में खर्च हो चुका हैया फिर भृष्टाचार की भेंट चढ गया है ।धरातल पर कार्य के नाम पर कहीं पर भी कुछ भी नहीं है।इस सन्दर्भ में राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार के बीच सदैव ही तारतम्यता का अभाव रहा ।इस नदी के गन्दे नाले में परिवर्तित हो आज भारत ही नहीं कभी विश्व की सर्वाधिक पवित्र नदी कही जाने वाली गंगां जिसे सदैव से ही भारतीय जनमानस माँ के समक्ष पूज्यनीय मानता रहा है,की वर्तमान स्थित के लिये न्यायालय ,सरकारें (राज्य और केन्द्र)और जनता सब के सब बराबर के जिम्मेदार हैं
वस्तुतः गंगा तो कब का मर चुकी है अब जो भी शेष है वह या तो बरसात का पानी है या फिर एक शहर से दूसरे की ओर छोडा गया गन्दे नालों और कारखानों का पृदूषित जल मात्र है जिसे गंगा की मिट्टी अपनें स्वभाव वश कुछ किलोमीटर अपने साथ रख कर इस हद तक साफ कर देती है कि वह नदी के जल जैसा दिखने लगे जो सर्वथा पीने और नहाने योग्य भी नहीं होता अभी तक गंगा की स्वच्छता अभियान में खर्च की गई हजारों करोड की धन राशि का ज्यादा तर हिस्सा या तो कर्मचारियों के वेतन में खर्च हो चुका हैया फिर भृष्टाचार की भेंट चढ गया है ।धरातल पर कार्य के नाम पर कहीं पर भी कुछ भी नहीं है।इस सन्दर्भ में राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार के बीच सदैव ही तारतम्यता का अभाव रहा ।इस नदी के गन्दे नाले में परिवर्तित हो जाने के मूल करणों कारणों को जानते हुए भी उन्हें दूर करने के कोई पृयास नहीं किये गये सबसे अधिक दुख का विषय यह रहा कि बहुत से पर्यावरणविदों एवं उनके के विरोध के बावजूद सभी सरकारों ने गंगा के प्राप्त कोई सकारात्मक पहल करने की जगह टिहरी डैम बनवा कर न केवल इसके पृवाह को ही रोक दिया बल्कि गंगा के मूल मार्ग में भी परिवर्तन कर दिया गया परिणामतः वह स्वयं के जल को शुद्ध कर लेने की अपनी विशेषताओं को ही खो बैठी।इस सन्दर्भ में उच्चतम न्यायालय ने भी सरकारों का ही साथ दिया शायद माननीय न्यायालय इस तथ्य से अवगत ही नहीं था कि किसी भी नदी के पृवाह की निरन्तरता ही उसके जल को शुध्द करने में सबसे अहम भूमिका निभाती है पृवाह को रोका जाना नदी को तालाब में बदलने जैसा है जहाँ शुध्द जल भी पृदूषित हो जाता है और गंगा के सन्दर्भ में तो उसके पृवाह के साथ ही उसका वशिष्ट मार्ग ही उसकी पवित्रता का सबसे बडा कारण है
अत: बजाय एक दूसरे पर दोषारोपण करने के सभी सम्बन्धित पच्छों से पक्षों का यह दायित्व है कि इस पवित्र नदी के पृदूषण के मुख्य कारणों जो लगभग सभी सम्बन्धित पक्षों को ज्ञात हैं का स्थायी समाधान वैज्ञानिक ढंग निकालने का पृयास करें तो निश्चय ही हम सफल होंगें और यह पवित्र नदी पुनः अपना पुराना गौरव प्राप्त कर लेगी । वर्तमान केन्द्रीय सरकार राज्यों को साथ लेकर ऐसा करने में अवश्य ही सफल होगी
इस आशा और विश्वास के साथ
समस्त गंगा भक्त भारत आज भारत ही नहीं कभी विश्व की सर्वाधिक पवित्र नदी कही जाने वाली गंगां जिसे सदैव से ही भारतीय जनमानस माँ के समक्ष पूज्यनीय मानता रहा है,की वर्तमान स्थित के लिये न्यायालय ,सरकारें (राज्य और केन्द्र)और जनता सब के सब बराबर के जिम्मेदार हैं
वस्तुतः गंगा तो कब का मर चुकी है अब जो भी शेष है वह या तो बरसात का पानी है या फिर एक शहर से दूसरे की ओर छोडा गया गन्दे नालों और कारखानों का पृदूषित जल मात्र है जिसे गंगा की मिट्टी अपनें स्वभाव वश कुछ किलोमीटर अपने साथ रख कर इस हद तक साफ कर देती है कि वह नदी के जल जैसा दिखने लगे जो सर्वथा पीने और नहाने योग्य भी नहीं होता अभी तक गंगा की स्वच्छता अभियान में खर्च की गई हजारों करोड की धन राशि का ज्यादा तर हिस्सा या तो कर्मचारियों के वेतन में खर्च हो चुका हैया फिर भृष्टाचार की भेंट चढ गया है ।धरातल पर कार्य के नाम पर कहीं पर भी कुछ भी नहीं है।इस सन्दर्भ में राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार के बीच सदैव ही तारतम्यता का अभाव रहा ।इस नदी के गन्दे नाले में परिवर्तित हो आज भारत ही नहीं कभी विश्व की सर्वाधिक पवित्र नदी कही जाने वाली गंगां जिसे सदैव से ही भारतीय जनमानस माँ के समक्ष पूज्यनीय मानता रहा है,की वर्तमान स्थित के लिये न्यायालय ,सरकारें (राज्य और केन्द्र)और जनता सब के सब बराबर के जिम्मेदार हैं
वस्तुतः गंगा तो कब का मर चुकी है अब जो भी शेष है वह या तो बरसात का पानी है या फिर एक शहर से दूसरे की ओर छोडा गया गन्दे नालों और कारखानों का पृदूषित जल मात्र है जिसे गंगा की मिट्टी अपनें स्वभाव वश कुछ किलोमीटर अपने साथ रख कर इस हद तक साफ कर देती है कि वह नदी के जल जैसा दिखने लगे जो सर्वथा पीने और नहाने योग्य भी नहीं होता अभी तक गंगा की स्वच्छता अभियान में खर्च की गई हजारों करोड की धन राशि का ज्यादा तर हिस्सा या तो कर्मचारियों के वेतन में खर्च हो चुका हैया फिर भृष्टाचार की भेंट चढ गया है ।धरातल पर कार्य के नाम पर कहीं पर भी कुछ भी नहीं है।इस सन्दर्भ में राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार के बीच सदैव ही तारतम्यता का अभाव रहा ।इस नदी के गन्दे नाले में परिवर्तित हो जाने के मूल करणों कारणों को जानते हुए भी उन्हें दूर करने के कोई पृयास नहीं किये गये सबसे अधिक दुख का विषय यह रहा कि बहुत से पर्यावरणविदों एवं उनके के विरोध के बावजूद सभी सरकारों ने गंगा के प्राप्त कोई सकारात्मक पहल करने की जगह टिहरी डैम बनवा कर न केवल इसके पृवाह को ही रोक दिया बल्कि गंगा के मूल मार्ग में भी परिवर्तन कर दिया गया परिणामतः वह स्वयं के जल को शुद्ध कर लेने की अपनी विशेषताओं को ही खो बैठी।इस सन्दर्भ में उच्चतम न्यायालय ने भी सरकारों का ही साथ दिया शायद माननीय न्यायालय इस तथ्य से अवगत ही नहीं था कि किसी भी नदी के पृवाह की निरन्तरता ही उसके जल को शुध्द करने में सबसे अहम भूमिका निभाती है पृवाह को रोका जाना नदी को तालाब में बदलने जैसा है जहाँ शुध्द जल भी पृदूषित हो जाता है और गंगा के सन्दर्भ में तो उसके पृवाह के साथ ही उसका वशिष्ट मार्ग ही उसकी पवित्रता का सबसे बडा कारण है
अत: बजाय एक दूसरे पर दोषारोपण करने के सभी सम्बन्धित पच्छों से पक्षों का यह दायित्व है कि इस पवित्र नदी के पृदूषण के मुख्य कारणों जो लगभग सभी सम्बन्धित पक्षों को ज्ञात हैं का स्थायी समाधान वैज्ञानिक ढंग निकालने का पृयास करें तो निश्चय ही हम सफल होंगें और यह पवित्र नदी पुनः अपना पुराना गौरव प्राप्त कर लेगी । वर्तमान केन्द्रीय सरकार राज्यों को साथ लेकर ऐसा करने में अवश्य ही सफल होगी
इस आशा और विश्वास के साथ
समस्त गंगा भक्त भारत वर्ष
आज भारत ही नहीं कभी विश्व की सर्वाधिक पवित्र नदी कही जाने वाली गंगां जिसे सदैव से ही भारतीय जनमानस माँ के समक्ष पूज्यनीय मानता रहा है,की वर्तमान स्थित के लिये न्यायालय ,सरकारें (राज्य और केन्द्र)और जनता सब के सब बराबर के जिम्मेदार हैं
वस्तुतः गंगा तो कब का मर चुकी है अब जो भी शेष है वह या तो बरसात का पानी है या फिर एक शहर से दूसरे की ओर छोडा गया गन्दे नालों और कारखानों का पृदूषित जल मात्र है जिसे गंगा की मिट्टी अपनें स्वभाव वश कुछ किलोमीटर अपने साथ रख कर इस हद तक साफ कर देती है कि वह नदी के जल जैसा दिखने लगे जो सर्वथा पीने और नहाने योग्य भी नहीं होता अभी तक गंगा की स्वच्छता अभियान में खर्च की गई हजारों करोड की धन राशि का ज्यादा तर हिस्सा या तो कर्मचारियों के वेतन में खर्च हो चुका हैया फिर भृष्टाचार की भेंट चढ गया है ।धरातल पर कार्य के नाम पर कहीं पर भी कुछ भी नहीं है।इस सन्दर्भ में राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार के बीच सदैव ही तारतम्यता का अभाव रहा ।इस नदी के गन्दे नाले में परिवर्तित हो आज भारत ही नहीं कभी विश्व की सर्वाधिक पवित्र नदी कही जाने वाली गंगां जिसे सदैव से ही भारतीय जनमानस माँ के समक्ष पूज्यनीय मानता रहा है,की वर्तमान स्थित के लिये न्यायालय ,सरकारें (राज्य और केन्द्र)और जनता सब के सब बराबर के जिम्मेदार हैं
वस्तुतः गंगा तो कब का मर चुकी है अब जो भी शेष है वह या तो बरसात का पानी है या फिर एक शहर से दूसरे की ओर छोडा गया गन्दे नालों और कारखानों का पृदूषित जल मात्र है जिसे गंगा की मिट्टी अपनें स्वभाव वश कुछ किलोमीटर अपने साथ रख कर इस हद तक साफ कर देती है कि वह नदी के जल जैसा दिखने लगे जो सर्वथा पीने और नहाने योग्य भी नहीं होता अभी तक गंगा की स्वच्छता अभियान में खर्च की गई हजारों करोड की धन राशि का ज्यादा तर हिस्सा या तो कर्मचारियों के वेतन में खर्च हो चुका हैया फिर भृष्टाचार की भेंट चढ गया है ।धरातल पर कार्य के नाम पर कहीं पर भी कुछ भी नहीं है।इस सन्दर्भ में राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार के बीच सदैव ही तारतम्यता का अभाव रहा ।इस नदी के गन्दे नाले में परिवर्तित हो जाने के मूल करणों कारणों को जानते हुए भी उन्हें दूर करने के कोई पृयास नहीं किये गये सबसे अधिक दुख का विषय यह रहा कि बहुत से पर्यावरणविदों एवं उनके के विरोध के बावजूद सभी सरकारों ने गंगा के प्राप्त कोई सकारात्मक पहल करने की जगह टिहरी डैम बनवा कर न केवल इसके पृवाह को ही रोक दिया बल्कि गंगा के मूल मार्ग में भी परिवर्तन कर दिया गया परिणामतः वह स्वयं के जल को शुद्ध कर लेने की अपनी विशेषताओं को ही खो बैठी।इस सन्दर्भ में उच्चतम न्यायालय ने भी सरकारों का ही साथ दिया शायद माननीय न्यायालय इस तथ्य से अवगत ही नहीं था कि किसी भी नदी के पृवाह की निरन्तरता ही उसके जल को शुध्द करने में सबसे अहम भूमिका निभाती है पृवाह को रोका जाना नदी को तालाब में बदलने जैसा है जहाँ शुध्द जल भी पृदूषित हो जाता है और गंगा के सन्दर्भ में तो उसके पृवाह के साथ ही उसका वशिष्ट मार्ग ही उसकी पवित्रता का सबसे बडा कारण है
अत: बजाय एक दूसरे पर दोषारोपण करने के सभी सम्बन्धित पच्छों से पक्षों का यह दायित्व है कि इस पवित्र नदी के पृदूषण के मुख्य कारणों जो लगभग सभी सम्बन्धित पक्षों को ज्ञात हैं का स्थायी समाधान वैज्ञानिक ढंग निकालने का पृयास करें तो निश्चय ही हम सफल होंगें और यह पवित्र नदी पुनः अपना पुराना गौरव प्राप्त कर लेगी । वर्तमान केन्द्रीय सरकार राज्यों को साथ लेकर ऐसा करने में अवश्य ही सफल होगी
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