Menu
blogid : 17538 postid : 699765

●आन्दोलन से आन्दोलन तक●

मृगत्रष्णा
मृगत्रष्णा
  • 12 Posts
  • 1 Comment
अगर हम इस देश के इतिहास का अवलोकन करने का कष्ट करें तो यह तथ्य स्वयं ही द्रष्टि गोचर होता है कि इस देश की सभ्यता संस्कृति ,सम्माजिक  एवम नैतिक मूल्यों का जितना अधिक पतन स्वतंत्र भारत के इस छोटे से काल खंण्ड में हुआ है उतना अधिक अवमूल्यन सम्पूर्ण भारत के ज्ञात इतिहास में भी कभी नहीं हुआ ।इस सन्दर्भ में अगर हम इस देश की गुलामी के काल खंण्ड की ओर देखें तो ये तथ्य सामने उभर कर आते है कि इस कालखंड में तात्कालिक विदेशी शासको द्वारा यहाँ की आम जनता पर ढाए तमाम तरह के जुल्म,लालच और प्रलोभन भी उनको अपनी संस्कृतिक धरोहर और नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन करने में असफल रहे इसका प्रमुख कारण यहाँ के ज्यादातर देशी शासको द्वारा युद्ध के मैदान में हार जाने या फिर हार की आशंका से उनका प्रभुत्व स्वीकार कर लेने के बावजूद यहाँ के आम जनमानस ने इन विदेशी शासको के प्रभुत्व को भावनात्मक रूप सेकभी भी स्वीकार नहीं किया ।उपरोक्त कुर्बानियों का सुखद परिणाम यह रहा कि इतने लम्बे अंतराल के गुलामी के कालखंड के बावजूद हम अपनअस्तित्व बचाने में सफल रहे ,वस्तुतः भारत विश्व का एक मात्र ऐसा देश है जो यह सब कुछ करने में सफल रहा वर्ना विश्व के ज्यादातर देश गुलामीं के चुंगल में फस कर अपनी सभ्यता संस्कृति और आत्म बल सब कुछ खो चुके है यद्यपि व्यक्तिगत स्तर परअत्यधिक आत्मबल से भरपूर होने के बावजूद  सामाजिक एवम झेत्रीय स्तर पर व्यापक बिखराव के साथ राष्ट्र प्रेम के  आभाव के कारण यहाँ की जनता  संगठित होकर  तो कभी भी विदेशी शासको की गुलाम़ी से स्वयं को आजाद कराने में प्रयास रत ही नहीं हुई और और शायद इसलिए कभी पूर्ण रूपेण सफल भीनहीं हो पाई।                                           सम्पूर्ण गुलामी के काल खंड में श्री महात्मा गाँधी जी पहले ऐसे महापुरुष हुये जिन्होंने सम्पूर्ण भारतीय जनमानस की ताकत और कमजोरियों को समझने के बाद उनके सोये हुए आत्म बल  को जगाकर ,
अंग्रेजो के विरुद्ध के विरुद्ध एक सफल स्वतंत्रता आन्दोलन संचालित कर इस देश को आजाद करवाने में सफल रहे।लेकिन यह आन्दोलन स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए कुछ अति महत्वाकान्झी लोगों की हर स्थिति में सर्वोच्च पद प्राप्त करलेने की अभिलाषा के फलस्वरूप इस देश के विभाजन का कारण भी बना ।साथ ही स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधान मंत्री के रुपमे एक ऐसे महापुरुष केभारत के पदासीन होने का कारण भी  बना जो राजनैतिक,शासनिक,प्रशासनिक कुटनीतिक ,विदेशनीति एवं रक्षा सम्बन्धी निर्णय लेते वक्त देश हित का ध्यान रखने में पुर्णतः असफल रहे  ।इनके गलत निर्णयोंले के कारण देश का बहुत बडा भाग पडोसी देशों के हाथों जाता रहा इसके बावजूद भी वे पडोसी देशों के साथ सार्थक सम्बन्ध बनाने में पूरी तरह विफल रहे।कुछ मुस्लिम कट्टरपन्थियों द्वारा सांप्रदायिकता का जहर फैला कर धार्मिक आधार पर देश का एक विभाजन  करवा देने के बावजूद, इनके द्वारा उन स्थितियों को जिन्दा रहने दिया ,जो सांप्रदायिक कटुता फैलाकर देश के बिभाजन का कारण बनी थी ,सविंधान और कानून मे ऐसी कोई  व्यवस्था नहीं की गयी जिससे कि देश को दुबारा स इने सांप्रदायिक कट्टर पंथियों के हाथों में जाने से रोका जा सके।,सामाजिक बिकास की पहल केवल  हिन्दू धर्म की कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए तो की गयी लेकिन अन्य  धर्मों की सामाजिक कुप्रथाओं  को डर वश या अन्य किसी कारण से,समाप्त करने से परहेज किया गया।जो आगे चलकर मुस्लिम कट्टर पंथी तत्वों के और अधिक मुखर होजाने का कारण बना जो  अंततः हिन्दू कट्टरपंथ के भी अस्त्तित्व में आने का कारण बना
ऐसे और भी बहुत से कारण रहे जो इस तथ्य को निर्धारित करने का पर्याप्त आधार प्रदान करते है कि प्रथम प्रधान मंत्री के रूप में इस देश के सफल स्वतंत्रता आन्दोलन की इस उत्पत्ति  का चयन देश के दूरगामी हितों को अत्यधिक नुकसान पहुचने वाला रहा ।
तदुपरांत श्री जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में ,बिहार में सत्ता पक्ष  की नाकामियों के विरुद्ध शुरु किया गया एक सफल आन्दोलन जो जन आकान्छाओं के अनुरूप होने के कारण विस्तार पाकर देश व्यापी होकर
प्रधानमंत्री श्रीमती इन्द्रागांधी  के भी पतन का कारण बना  जिन्होंने स्वयं के विरुद्ध न्यायालय के एक आदेश को पलट कर प्रधान मंत्री के पद पर अपने आपको को सुरछित रखने के लिए बिना किसी पर्याप्त कारण के देश में आपातकाल लागू कर सम्पूर्ण सविंधानिक व्यवस्था  को  ही निष्क्रियकर देने का  अलोकप्रिय कार्य किया था । लेकिन यह सफल आन्दोलन लालू यादव जैसे कई शासनाध्यक्षो के जन्म का कारण भी बना जिन्होंने अपने व्यक्तिगत हितों को पूरा करने के लिए भारतीय प्रजातान्त्रिक व्यवस्था ,सविंधान एवं कानून की कमियों का लाभ उडाते हुए डकैतों लुटेरो बदमाशों  एवं भ्रस्टाचारियों को शासन व्यवस्था में उचित स्थान दिलाने का महान कार्य किया साथ ही इससे होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए देश की जनता को जाति,धर्म और क्षेत्र वाद की राजनीति में इस तरह उलझा दिया कि जनसामान्य अपनी ही परेशानियों में इस कदर उलझा रहे कि वह चाह कर भी उनकी कमियों की तरफ उँगली उडाने का समय ही न मिल सके ।
पुनः नब्बे  के दशक में केन्द्रीय शासन सत्ता के विरुद्ध ,भ्रष्टाचार को लेकर  श्री वी पी सिंह के  नेतृत्व  में एक सफल  राष्ट्रीय आन्दोलन  शुरू किया गया जिसकी वजह से श्री राजीव गाँधी को सत्ता  से बाहर कर भ्रष्टाचार के विरुद्ध मसीहा बन कर उभरे श्री वी  पि सिंह देश का प्रधानमंत्री बनने में सफल रहे।लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में अपने छोटे से कार्यकाल में भी उन्होंनेभारतीय जन मानस को अपनी कार्य शैली से न केवल बुरी तरह  नाराज किया बल्कि भ्रष्टाचार को समाप्त कर देने के जिस मुद्दे को आगे कर  प्रधानमंत्री का पद पा सके थे उसे ही भुलाते हुये पुरे देश को जातिवाद और क्षेत्रवाद की राज नीति में बॉंट कर सदा सर्वदा के लिए प्रधान मंत्री पद से विदा  ले गये ।
इसी काल खंण्ड में बिना किसी शोर शराबे के श्री काशी राम जी के नेतृत्व में एक नये किस्म आंदोलन  की  शुरुआत हुयी  जिसने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के  सामाजिक एवम  राजनैतिक विकास के लिए उल्लेखनीय कार्य किया यद्यपि इसके पूर्व भी इदेश के इतिहास में महात्मा गाँधी जी एवं डा0अम्बेडकर
समेत कई अन्य महापुरुसो ने भी इस वर्ग विशेष के राज्स्नैतिक  सामाजिक एवम  आर्थिक उत्थान के लिए  व्यवस्था सम्बन्धी कई परिवर्तन कर  इस वर्ग के विकास के लिए कई साहसिक कदम उठाये और काफी हद तक  वे इसमें सफल भी रहे लेकिन काशीराम जी के नेतृत्व में शुरू किया गया यह पहला आन्दोलन था जो इस वर्ग विशेष  में इसकेें सोये हुए आत्म विश्वास एवम आत्मगौरव को जगाने में  पुर्णतःसफ़ल रहा।बल्कि भारतीय इतिहास में पहली बार देश की मुख्य धरा में शामिल होकर सम्पूर्ण राजनैतिक व्यावस्था  अपने अस्तित्व का अहसास दिलाने में सफल रहा।लेकिन अन्य आन्दोलनों की तरह यह आन्दोलन  भी एक ऐसी आत्ममुग्ध प्रतिक्रियावादी मानसिकता से  भरपूर ,भ्रस्टाचार को संसथागत स्वरुप प्रदान करने वाली राजनेत्री के उदय का करण बना जिसने इस वर्ग से प्राप्त  जनसमर्थन के फलस्वरूप मिली सत्ता का लाभ समाज के आर्थिक उत्थान की जगह स्वयं  के लिए ही अधिक किया ।परिणामतः यह आन्दोलन भी अपने मूल पथ से भटक कर कमजोर हो गया।
पुनः एक लम्बे अंतराल के बाद देश की सम्पूर्ण व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण अंग बनकर सम्पूर्ण शासनिक एवम प्रशासनिक व्यवस्था के संचालन पर कब्ज़ा कर अपने निजी हितों की पूर्ति हेतु देश को बर्बाद कर देने वाले भ्रष्टाचारियों एवम समाज विरोधी तत्वों को रोकने के लिये राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी की विचारधारा से प्रेरित एक महापुरुष  श्री अन्ना हजारे ने एक सफल आन्दोलन का नेत्रत्व करते हुये अपनी व्यक्तिगत जिंदगी को दावं पर लगाकर राजनैतिक सत्ताधारियों को इस देश को कंगाल कर रहे भ्रष्टाचारियों एवम समाज विरोधी तत्वों पर अंकुश लगाने के लिए सख्त कानून लाने को मजबुर किया। लेकिन यह आन्दोलन भी श्री अरविन्द केजरी वाल के नेतृत्व में कुछ अति  राजनैतिक महत्वाकान्झाओ सें युक्त राजनैतिक नेताओं के जन्म का  कारण बना जिन्होंने इस आन्दोलन की सफलता पर संदेह व्यक्त करते हुये इसे बीच में ही छोड कर इस विश्वास के साथ राजनीत में प्रवेश ले लिया कि इस रास्ते वे सत्ता में पहुँच कर व्यवस्था को पाक साफ कर सम्रद्ध भारत का निर्माण करने में सफल हो जायेगें सौभाग्य से ऎन केन प्रकारेण चुनाव जीत कर सत्ता प्राप्त करने में सफल भी हो गये ।लेकिन सत्ता पर पहुचने के बाद शुरू केअपने छोटे से कार्य काल में अपनी जिस कार्यशैली का परिचय दियाहै  उससे   उन्हें भी उन सड़क छाप  नेताओं की श्रेणी में लाकर खडा कर दिया जिनके लिए सत्ता ही सब कुछ है देश और प्रदेश कुछ भी नहीं ।इनकी इस शैली से उस बौद्धिक वर्ग को निश्चय ही बहुत अधिक निराशा हुयी होगी जिन्हों ने इस नेत्त्रत्व को इस आशा से वोट देकर सत्ता तक पहुचाया होगा कि यह दल सत्ता में आने के बाद एक ऐसी व्यवस्था देने में सफल होगा जो सम्पूर्ण देश के लिए एक आदर्श बन कर देश के भविष्य के निर्माण में सहायक बनेगी ।यह तय है,जिनकी नजर में सत्ता ही सब कुछ है वह कभी भी देश का भला नहीं कसर सकते। शेष भविष्य के गर्भ में है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh